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गीता प्रेस, गोरखपुर >> माघमास-माहात्म्य

माघमास-माहात्म्य

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 940
आईएसबीएन :00000

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प्रस्तुत पुस्तक में वर्णित माघमास माहात्म्य पद्यपुराण के उत्तर-खण्ड से उद्धत किया गया है।

Maghmas Mahatmya-A Hindi Book by Geetapres Gorakhpur - माघमास-माहात्म्य - गीताप्रेस

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

नम्र निवेदन

इस युग में धर्म की रक्षा और भक्ति के विकास का जो यत्किंचित दर्शन हो रहा है, उसका समस्त श्रेय पुराण साहित्य को है। पद्मपुराणों को तो भगवान का हृदय कहा जाता है। इसके प्रत्येक खण्ड में विशेष रूप से भगवद्भक्ति महिमा का वर्णन है। इसीलिए इसमें अनेक व्रत, तीर्थ, दान, अनुष्ठान आदि के द्वारा मनुष्य के प्रत्येक व्यवहार एवं जीवन के प्रत्येक क्षण को भगवन्मय बनाने की प्रेरणा दी गयी है।

इस पुस्तक में वर्णित माघमास-महात्म्य पद्मपुराण के उत्तर-खण्ड के उद्वत किया गया है। यद्यपि भगवान का पूजन, भजन, कीर्तन, व्रत, स्नान आदि कृत्य नित्य ही करने योग्य तथा भगवत्प्राप्ति एवं भगवान की प्रसन्नता के साधन हैं कुछ विशेष महीनों में भगवत्प्रीत्यर्थ इन्हें करने का अलग ही महत्व है। विशेष माघ महीनों के उत्तरायणकाल में भगवान् की प्रसन्नता के लिये किए जाने वाले नित्य-स्नान, पूजन दान अक्षय हो जाते हैं। माघ-स्नान, दान, पुण्य के द्वा्रा भगवान शीघ्र प्रसन्न हो जाते है। जो मनुष्य माघ महीने के उषाकाल में किसी नदी और तीर्थ में भगवान के निमित्त नित्य-स्नान-दानादि करते हैं, वे अपनी सात पीढ़ियों का उद्धार करके भगवान को प्राप्त होते हैं।

इस पुस्तक में अनेक दृष्टान्तों एवं प्रेरक कथाओं के माध्यम से माघमास-माहात्म्य का अत्यन्त सुन्दर विवेचन प्रस्तुत किया गया है। पहले माघमास के माहात्म्य को वैशाख और कार्तिक-माहात्म्य के साथ गीताप्रेस के द्वारा प्रकाशित किया गया था। पाठकों की अभिरुचि और माँग को दृष्टि में रखते हुए इस पुस्तक में माघमास-माहात्म्य को अलग से पाठको की सेवा में प्रस्तुत किया गया है। आशा है, पाठकगण गीताप्रेस से प्रकाशित अन्य पुस्तकों की भाँति इसके भी स्वाध्याय से लाभ उठायेंगे।

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